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Sep 19, 2013

18th september

न पानी बहता ,
न पत्थर कमज़ोर होता।
सारा गाव बिखर दिया।
सारा नज़ारा एक तरफ सिकुड़ सा गया।
अक्सर सोचना पड़ता था के इस तेज बहाव को,
मछलिया  कैसे झेलती  होगी।
अब कुछ सोचने से ड़र लगता है|
कही वो सच न हो |
और वही ख्याल फिर आता है।
के,
क्या वो मछलिया अब भी तहरति होगी ? 

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