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Jun 20, 2013

Art Work'S Slideshow

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Jun 14, 2013

कुछ सोच

जो सोचाथा वही सब हो रहा है 
फिर कदम क्यों  खामोश खड़े है । 
रास्ता मंजिल की तरफ का तो सोचा ही नहीं था । 
मंजिले तो पड़ाव होती है। 
ऐसे एक राह चलते एक राही ने मुझसे कहा था। 
 मेरे साथ चलो तुम्हे सूरज पर लेकर चलता हु । 
मेने उसे पागल समझा और चल पड़ा ,
अब समझा वो यहाँ तक आकर लौट चूका था । 
उसे मंजिल मिल गयी,
और मुझे  ख़ामोशी । 
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अभिजित १ ५ जून २  ० १ ३ 


पुरानी किताबे खोलने का एक डर हमेशा दिल में लगा रहता है । 

कही पन्ने बिखर ना जाये । 
वैसे ही कुछ छोटी छोटी यादो की किताबों का है । 
वैसे तो वो बिखरे हुए ही है । 
डर ये है ,
भूले हुए गिले फिरसे याद न आजाये । 
------------------------------अभिजित १ ३ जून २ ० १ ३

Jun 12, 2013

वक़्त १ १ जून २ ० १ ३

कुछ और देर तक इंतजार करते है ,
वक़्त का तो हमेशा का आना जाना लगा रहेगा। 
और सच बताऊ तो ,
वैसे भी उसे गुजरना ही तो आता है । 
आने की आदत तो उसने हमारे लिए कभी रखी ही नहीं । 
जब भी आया कुछ लेने ही आया ,
कुछ छोडना तो उसे आता ही कहा है । 
अजीब सी  एक दुनिया छोड़ जाता है यादों की ,
बस 
जिन्हें हम सँभाले  रहते है । 
किसी न किसी पल के लिए ।
इसीलिए कह रहा हु थोड़ी देर और इंतजार कर लेते है 
आज वक़्त को गुजरते हए  देखते है ,
कभी महसूस ही होने दिया उसने ,
आखो में वक़्त थामने की ताकत होती है ।
 आज जी भर के दख लू तुम्हे 
तुम भी चाहो तो ......... 

Jun 11, 2013

१ १जून २ ० १ ३

कुछ संभालो मतलब कुछ गिर जरूर रहा है । 
जख्म पर दिल संभलना चाह रहा है । 
अपनी फितरत ही उस कागज पर पड़ी हुई कलम जैसी है। 
जिसे हमें छोड़ सब अपनी लिखना चाह  रहे है ।
कागज से याद आया ,
आज बाहर बारिश का माहोल बन चूका है |
क्यों न कलम छोड़ कश्ती बनाकर ,
भाग चला जाऊ । 
कागज पर लिखे हुए  उन चंद  अल्फाज  रोने से बहतर ,
कोरे कागज की कश्तिया बनाकर कुछ और जिन्दगी देख आउ । 
----------------------------------------------------------------------------------------अभिजित