कल जब घर बेचने का ख्याल आया ।
तो सोचा यादों से पहले बात कर लूँ |
कुछ मान गयी ।
कुछ कह न पायी ।
कुछ दिवार पर ही रहना चाहती है ।
और
कुछ खुश थी मेरे जाने पर ।
.......................................
जब घर खाली करने का समय आया तब,
आहिस्ते आहिस्ते उस सामान का बोझ बढता चला गया
लगा और कुछ यादे अगर तैयार होजाए तो पुछलू ।
वो तैयार तो नहि लगी पर
फिरभी मैने दिवार के उखडे हुए रंग का तुकडा अपने साथ ले लिया
और
कुछ चित्र दिवार से फिर टांग दि ।
कुछ पौधे भी बरामदे मे रख दिये ।
और एक घडी जिसने सारा बोझ उतार दिया ।
जिस्ने सारा वकत समा रखा था।
अभिजीत 24/02/2013
No comments:
Post a Comment