एक तनहाई थी,
जो अपनों से छुपा ,चुरा कर
खुश रहता था ।
अब ये है,
जहा यादें कुछ ज्यादा है ।
खुदको मिटते हुए महसूस
कर मरना और खुद को ख़त्म कर
देना।
घरपर ही देख लिया।
सांसे तो बाहर निकल दी।
मुझे कुछ और न मांगी
फुरसत मिल गयी।
तनहाई गहरी हो गयी ।
मगर कुछ पाने कि ,
ख़ुशी वही उतनी ही है ।
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